शिव को भाए पावन सावन
प्रेमप्रकाश दुबे की रिपोर्ट
निजामाबाद आजमगढ़।ग्रीष्म ऋतु की तपिश और अकुलाहट के बाद मेघों से आबद्ध आसमान और धरती पर उमड़ती बरखा बहार जीव जगत को प्रकृति का अनुपम उपहार है। वन उपवन में हरियाली,फल फूल से लदी पेड़ पौधों की डालियां,कोयल की कूक,नदी तालाब और झरनों का कल कल निनाद यह धरती के सोलह श्रृंगार का आभास कराता है।ग्रीष्म के थपेड़े सहती प्रकृति जिस प्रकार सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति का आनंद पाती है,उसी प्रकार सावन मास प्राणियों के मन के सूनेपन को दूर कराता है।शास्त्रों में उल्लेख है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास की योगनिद्रा हेतु चले जाते हैं।अन्य देवता भी अपने सुविधानुसार शयन पर चले जाते हैं।ऐसे समय में नेतृत्व संभालते हुए माता पार्वती संग भगवान शिव जीव जगत के पालनार्थ वा लोक कल्याण के लिए मृत्युलोक में आते हैं।मान्यता है कि इस अवधि में देवाधिदेव शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं,जो जाग्रत अवस्था में रहते हैं।अपने भक्तों के बीच आने का मोह बाबा को प्रिय है,तो भगवती पार्वती के लिए भी मनभावन है।वैसे भी सावन मास की उत्त्पति श्रवण नक्षत्र से हुई है। श्रावण महात्म्य में उल्लेख है कि योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर शरीर त्यागने से पूर्व सती ने भगवान शिव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का संकल्प वा प्रण लिया था।अपने दूसरे जन्म में भी देवी सती हिमालय और मैना के घर पार्वती के रूप में जन्म लेती है,तो युवावस्था में ही निराहार रहकर कठोर तप और साधना कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करती हैं ।वह माह सावन ही था।कुंवारी कन्याएं पूरे सावन माह हर सोमवार को शिव के समान स्त्री का सम्मान करने वाले पति की कामना से व्रत और जलाभिषेक करती हैं।ऐसा माना जाता है कि जिस माह में महादेव ने विषपान किया था,वह सावन माह ही था।विषपान से भगवान शिव के शरीर का ताप बढ़ने लगा,जिसे शांत करने के लिए देवों ने शीतलता प्रदान की,लेकिन इससे भी भगवान शिव की तपन शांत नही हुई ।स्वयं आशुतोष भगवान शिव ने शीतलता पाने के लिए चंद्रमा को अपने शिर पर धारण किया,जिससे उन्हें शीतलता मिली।वही इंद्र ने आदिदेव के ताप को शांत करने के लिए घनघोर वर्षा की,जिससे भगवान शिव को शांति और शीतलता मिल सके।इस घटना के बाद से सावन के महीने में शिव जी को प्रसन्न करने वा शीतलता प्रदान करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है।बाबा भोलेनाथ को औघड़ दानी भी कहा जाता है।इसके पीछे मान्यता है कि वे सिर्फ एक लोटा पानी और बेलपत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भावों में बहते हुए भक्तों को हर कामना पूरी होने का वरदान दे जाते हैं।सावन माह भगवान शिव को अतिशय प्रिय है।अतः हमे सावन में देवाधिदेव महादेव का अभिषेक कर पुण्य अर्जन करना चाहिए।