आस्था का प्रतीक है निजामाबाद का ऐतिहासिक गुरुद्वारा
प्रेम प्रकाश दुबे की रिपोर्ट
निजामाबाद आजमगढ़ ।आस्था का प्रतीक होने के साथ ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर है निजामाबाद का चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा ।यहां गुरु नानक देव ,गुरु तेज बहादुर ,सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के साथ उदासीन पंथ के संस्थापक व गुरु नानक देव जी के पुत्र श्री चंद्र जी महाराज ने भी तप किया था। बताते हैं कि गुरु अमर दास की वंशावली ने बाबा कृपाल दास जी गुरु नानक देव के पवित्र स्थलों की खोज करते हुए निजामाबाद पहुंचे और यही रुक गए ।यही उनके एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम साधू सिंह था ।और उनके साथ सौ सिंहो का जत्था हुआ करता था ।गुरुद्वारे में आज भी पुराने शस्त्र नेजे,ढाल ,तलवार, कवच, भाला ,बंदूक ,कटार आदि मौजूद है। 1974 में यहां स्थित ऐतिहासिक दुख भंजन कुएं की खुदाई में अनेक प्राचीन हथियार मिले ।मान्यता है कि कुएं के जल से स्नान करने पर मिर्गी कुष्ठ रोग जैसे असाध्य रोग समाप्त हो जाते हैं ।यही नहीं गुरुद्वारे में गुरुओं द्वारा हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब एवं गुरु गोविंद द्वारा लिखित दशम ग्रंथ भी उपलब्ध है ।ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही निजामाबाद की धरा पर सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी के पवित्र चरण लगभग 400 वर्ष पूर्व पड़े थे और उन्होंने तमसा नदी के किनारे साधना की थी। जनपद मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा पौराणिक महत्ता को समेटे सिख धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है ।इस गुरुद्वारे की महत्ता के बाबत बताया जाता है कि तकरीबन 400 वर्षों पूर्व सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी महाराज अपना एकेश्वरवाद व मानवता का संदेश देने के लिए समूचे देश में भ्रमण कर रहे थे। उसी दौरान नानक देव निजामाबाद भी आए और कस्बे के उत्तरी भाग में स्थित तमसा नदी के पावन तट पर ठहरे और यहीं पर रहकर उन्होंने साधना की। इस दौरान नानक देव जी मानवता का संदेश देते थे और क्षेत्रीय जन उनके उपदेश को सुनने के लिए जुटते थे ।जन श्रुतियों के अनुसार उसी दौरान एक कायस्थ परिवार का युवक काल के गाल में समा गया था। इससे दुखी उसकी पत्नी नानक देव जी की साधना स्थली पर पहुंची और गुरु जी के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई ।युवती की व्यथा सुनकर नानक जी ने अपने तपोबल से युवक को जीवित कर दिया ।घटना के बाद लोगों की आस्था का ठिकाना नहीं रहा। कस्बे में स्थित मध्य भाग में अपनी चरण पादुका छोड़ नानक देव उपदेश के लिए दूसरे ठौर चल दिए ।इस स्थली पर पड़ी उनकी चरण पादुका के साथ लोगों की आस्था भी जुड़ गई ।धीरे-धीरे यह स्थान गुरुद्वारे के रूप में परिवर्तित हो गया ।यहां पर प्रथम गुरु की तपोस्थली देख गुरु तेग बहादुर जी भी यहां पधारे और यहीं पर तप करना शुरू किए ।उसी दौरान कस्बे में पानी की किल्लत देख गुरु जी ने अपनी तपोस्थली के पास कुआ खुदवाया। जिसका नामकरण दुख भंजन कुआं पड़ा। ऐसी मान्यता है कि इस के पवित्र जल पीने से मनुष्य के सारे दुख दूर हो जाते हैं ।गुरु तेग बहादुर जी ने 21 दिन तक यहां तप कि या ।गुरु नानक जी व गुरु तेग बहादुर जी दोनों ने इस स्थली पर तप कर यहां की महत्ता ऐसे बढ़ाई कि सिखों के लिए यह भूमि काफी महत्वपूर्ण हो गई ।गुरु नानक वा गुरु तेग बहादुर की चरण पादुका मौजूद होने के कारण इस स्थली का नाम चरण पादुका साहिब पड़ा ।गुरुद्वारे में हस्तलिखित 31 ग्रंथ मौजूद है। वैसे हस्तलिखित ग्रंथों की संख्या 100 के आसपास थी लेकिन इस समय उसमें 31ही सुरक्षित है। बताया जाता है कि दूसरा कोई ऐसा गुरुद्वारा नहीं है जहां गुरु नानक जी व गुरु तेग बहादुर जी गोविंद सिंह जी श्री चंद्र जी ठहरे हो और तप किए हों ।गुरु नानक व गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी खड़ाऊ छोड़ी हो और इतने ग्रंथ मौजूद हो।सिख समुदाय के लिए यह स्थली आस्था का केंद्र बिंदु है। गुरु नानक जी की जयंती पर यहां काफी संख्या में सिख समुदाय के लोग आते हैं अरदास करते हैं