पुण्य व मुक्ति प्रदान करती है महाशिवरात्रि
शुभम दुबे की रिपोर्ट
निजामाबाद आजमगढ़। सहस्र नामों से प्रसिद्ध भगवान शिव कभी जन्में नहीं,वे अजन्मे हैं और देवताओं के भी देव हैं।शिव में विवेक व वैराग्य, दोनों संपूर्णता में समाविष्ट है।शिव नाम स्मरण होता रहे,तो स्वतः ही विवेक का तृतीय नेत्र खुल जाता है।शिव ही सृजन व संहार हैं।शिव में शास्त्र व संस्कृति दोनो समाए हैं।महाशिवरात्रि भगवान शिव के लिंगरूप में उद्भव के उपलक्ष्य में मनाई जाती है,जिसे पुण्यदायिनी व मुक्ति प्रदान करने वाली रात्रि भी कहा जाता है।महाशिवरात्रि का महापर्व फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर्व का महत्व सभी पुराणों में मिलता है।इस दिन व्यक्ति व्रत रखते हैं तथा शिव महिमा का गुणगान करते हैं।महाशिवरात्रि का पर्व केवल दिखावे का पर्व नही है। न ही यह दूसरों की देखा देखी मनाने वाला पर्व है।यह अत्यंत विशिष्ट एवम आध्यात्मिक पर्व है।शिव को महाकाल कहा गया है।परमेश्वर के तीन रूपों में से एक रूप की उपासना महाशिवरात्रि के दिन की जाती है।मनुष्य को भगवान के तीन रूपों में से एक रूप का सरल तरीके से उपासना करने का वरदान महाशिवरात्रि के रूप में मिला है।महाशिवरात्रि के विषय में अनेक मान्यताएं हैं।उनमें से एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव जी ने इस दिन ब्रह्मा के रूप में भद्र रूप में अवतार लिया था।इस दिन प्रलय के समय प्रदोष के दिन भगवान शिव तांडव करते हुए समस्त ब्रह्माण्ड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं।इस कारण इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।इसी कारण महाशिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है।भगवान शिव सृष्टि के विनाश तथा पुनः स्थापना,दोनो के मध्य एक कड़ी जोड़ने का कार्य करते हैं। मानवीय अज्ञान में बद्ध जीव की अंतिम परिणति है_ शिव,शिवत्व व शिवतत्व में समर्पण।उनसे साधक की यही पुकार रहती है _ "हे भगवान शिव ! मैं कब गंगाजल में स्नानकर पवित्र फल _ फूलों से आपकी पूजा करता हुआ पर्वत की गुफा में शिलाखंड के आसन पर बैठकर आपके परात्पर,परब्रह्मस्वरूप में ध्यान लगाऊंगा ? हे महेश्वर!आपकी कृपा से प्राप्त निर्मलमति से इहलौकिक, पारलौकिक फल की समस्त कामनाओं को छोड़कर अपने आप में संतुष्ट रहकर गुरु के उपदेशों में तत्पर हो आपकी कृपा से एकमात्र ध्यान मार्ग में कब अडिग अविचल हो पाऊंगा?कब अपनी आर्त्तवन से शिव शिव शिव का उच्चारण करते हुए आपके ही चरणों में लीन हो समस्त सांसारिकता व सांसारिक दुखों से छुटकारा पा सकूंगा?"यह पुकार ही साधक को भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप का दर्शन कराती है।उसी स्वरूप की प्राप्ति के लिए इस महापर्व को उत्सव रूप में मनाया जाता है।