माता शीतला के दरबार में उमड़ा भक्तों का सैलाब
प्रेमप्रकाश दुबे की रिपोर्ट
निजामाबाद आजमगढ़।जिला मुख्यालय से 15 किमी0 पश्चिम दिशा में स्थित ऐतिहासिक कस्बा निजामाबाद काली मिट्टी से निर्मित नकाशीदार सामानों के लिए देश विदेश में सुविख्यात होने के साथ ही माता शीतला मंदिर के लिए भी जाना जाता है।मंदिर क्षेत्र इन दिनों हिंदू धर्मानुसार माता शीतला का स्थान ब्रह्म सत्ता में स्वास्थ्य मंत्री का माना जाता है।क्योंकि क्षेत्र में जब भी महामारी चेचक ,खसरे का प्रकोप फैलता है तो उससे राहत के लिए माता रानी को धार वा फूल अर्पित कर उन्हे मनाया जाता है।जिससे कि बीमार व्यक्ति को शीतलता प्रदान हो सके।मरीज के स्वस्थ होने पर माता के दरबार में सपरिवार पहुंच कर हलुआ पूड़ी का भोग लगाने की प्रथा है।इस मंदिर पर वासंतिक एवम शारदीय नवरात्र अवसर के साथ ही पूरे वर्ष भर मेला लगता है।जनपद मुख्यालय से 15 किमी0 पश्चिम निजामाबाद नगर से सटे हुए भैरोपूर ग्रामसभा में स्थित इस मंदिर मां के दरबार में सुबह एवम रात्रि में प्रतिदिन कीर्तन पूजन भक्तो के द्वारा संपन्न होती है।माता की शयन आरती के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है।क्षेत्र में मान्यता है कि माता के दर्शन पूजन से मन शांत रहता है,साथ ही शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है।माता की कृपा से परिवार में सभी सदस्य निरोग रहते है।माता रानी शीतला के क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक हिन्दू परिवार चाहे वह जीविकोपार्जन के लिए सुदूर प्रदेशों में ही क्यों न रहता हो फिर भी परिवार में किसी भी मांगलिक शुभ कार्य की संपन्नता के साथ ही साल में एक बार वार्षिक पूजा के लिए मां के दरबार में अवश्य हाजिरी लगाता है।देवी स्थान पर मंदिर का निर्माण लगभग 300 वर्ष पूर्व कराया गया था।पहले यहां पलाश के घने जंगल हुआ करते थे।घने जंगलों का अस्तित्व समय के साथ समाप्त हो गया।खाली स्थान पर आस्थावान भक्तों द्वारा कई धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया है।मंदिर की साफ सफाई वा पूजा स्थानीय माली समुदाय के लोग बखूबी निभाते हैं।90 के दशक में निजामाबाद के तत्कालीन उपजिलाधिकारी अविनाश सिंह की प्रेरणा से नगर वासियों क्षेत्रवासियों के सहयोग से चहारदीवारी का निर्माण कराकर मंदिर को भव्य रूप दिया गया।इसके पूर्व इस स्थान पर सिर्फ माता रानी का मंदिर था।शेष भूमि पर अतिक्रमण वा गंदगी का साम्राज्य था।यह पौराणिक मंदिर जिले के साथ ही पूर्वांचल के जनपदों में स्थित सुप्रसिद्ध देवी मंदिरों में अपना अलग स्थान रखता है। पुराणों के अनुसार राजा दक्ष द्वारा शिव के अपमान से क्षुब्ध गौरा यज्ञ कुंड में कूद गई।यह समाचार सुन भगवान शिव पहुंचकर गौरा को यज्ञ कुंड से उठाकर हवा मार्ग से चल दिए।पुराणों के अनुसार मां की कुछ रक्त की बूंदे निजामाबाद की इस पावन धरती पर गिरी तब से मां गौरा के अंश के रूप में मां शीतला दरबार प्रसिद्ध हो गया।हिंदू परिवार में मांगलिक कार्य संपन्न होने के बाद माता शीतला के दरबार में जोड़े सहित परिवार संग पहुंच कर हलुआ पूड़ी का भोग लगाकर माता शीतला का दर्शन पूजन कर अपने और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हुए मत्था टेक रहे थे।सुबह से ही भक्तों की अपार भीड़ कढ़ाई चढ़ाने के लिए माता के दरबार में पहुंच रही थी।मान्यता है कि हिंदू परिवार में मांगलिक कार्य संपन्न होने पर माता के दरबार में पहुंच कर हलुआ और पूड़ी माता को चढ़ाया जाता है।वही हलुआ और पूड़ी चढ़ाने के लिए भक्तो का हुजूम सुबह से ही माता के दरबार में पहुंच रहे थे।सुबह से ही काफी लंबी लंबी लाइन भक्तो की लग गई थी ।सुबह से ही मंदिर परिसर धूप अगरबत्ती कपूर आदि की सुगंध और घंटों मां के जयकारों की आवाज से पूरा मंदिर परिसर गुंजायमान हो रहा था। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुबह से ही उपनिरीक्षक कैलाश यादव,उपनिरीक्षक सविंद्र राय,प्रदीप पांडेय,महिला उपनिरीक्षक सानिया गुप्ता सहित दर्जन भर पुलिस के जवान मंदिर परिसर में तैनात रहे।