Azamgarh सावन माह के तीसरे सोमवार को उपजिलाधिकारी सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करने दत्तात्रेय धाम जा पहुंचे
प्रेमप्रकाश दुबे की रिपोर्ट
निजामाबाद आजमगढ़। सावन माह के तीसरे सोमवार को ऐतिहासिक पुरातन दत्तात्रेय मंदिर पर सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करने सुबह ही उपजिलाधिकारी संत रंजन जा पहुंचे।सावन माह में दत्तात्रेय धाम पर सोमवार को भीड़ अत्यधिक होने के कारण पुलिस के जवानों की ड्यूटी सुबह से ही लगी रहती है।सुरक्षा की निगरानी करने उपजिलाधिकारी संत रंजन हर मंदिरों का दौरा कर रहे थे।दत्तात्रेय धाम मंदिर पर सुबह से ही भक्तों की लाइनें लगनी शुरू हो गई थी।भक्तगण सुबह से ही लाइनों में लगकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते दिखे।बारी आने पर भक्तों ने भांग, धतूरा,बेलपत्र,अक्षत, मदार के फूल धूप,अगरबत्ती आदि से भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन कर अपने और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हुए मत्था टेक रहे थे।मंदिर ॐ नमः शिवाय,हर हर महादेव के जयकारों से गूंज रहा था।मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था के लिए भारी पुलिस बल के जवान सुरक्षा व्यवस्था के साथ मंदिर की निगरानी कर रहे थे और दर्शनार्थियों को लाइनों में लगकर मंदिर में दर्शनों के लिए जाने दे रहे थे।सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हे सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग दिया था,उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।भगवान शिव को सावन महीना प्रिय होने के अन्य कारण यह है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं भूलोक वासियों के लिए शिवकृपा पाने का यह उत्तम समय है।पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था।समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की,लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलकंठ हो गया इसी से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा।विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।